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नदी जोड़ो अभियान, एक सदी का सपना

Janhitexpress
Last updated: 2024/12/28 at 5:48 AM
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5 Min Read
नदी जोड़ो अभियान, एक सदी का सपना
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भूपेन्द्र गुप्ता
नदी जोड़ो अभियान आज चर्चा का विषय है।  इसका श्रेय सभी पार्टियों लेने की कोशिश भी करती हैं लेकिन इन परियोजनाओं का इतिहास 100साल से भी अधिक पुराना है।इस इतिहास को जानकर यह समझा जा सकता है कि सपनों के फलीभूत होने में सैकड़ों साल  की तपस्या शामिल होती है ।इसमें कोई एक व्यक्ति अकेला नहीं है,बल्कि सरकारों के निरंतर और सकारात्मक प्रयास हैं।हालांकि गुलाम भारत मे 1900 के दशक में एक अंग्रेज इंजीनियर आर्थर कॉटन ने भारत की नदियों को जोडऩे की कल्पना की थी ।उसका उद्देश्य था कि नदियों के अतिरिक्त जल से बड़ी-बड़ी नहरें बनाकर जल मार्गों की वृद्धि की जा सकती है जिससे ब्रिटिश सरकार को व्यापारिक सुविधा मिलेगी तथा दक्षिण भारत के तथा उड़ीसा के सूखे से निपटा जा सकेगा और वहां पर अतिरिक्त जल भेज कर उत्पादन में वृद्धि भी की जा सकेगी ।किंतु इसमें आने वाले खर्च को देखकर ब्रिटिश हुकूमत भी आगे नहीं बढ़ी और यह ठंडे बस्ते में चली गई।

देश आजाद हुआ और राष्ट्र निर्माण की योजनायें बननी शुरू हुईं।गरीबी संसाधनों के अभाव और तकनीशियनों की कमी से प्रथमिकताये आगे बढ़ती गईं। आजादी के  लगभग 23 साल बाद जब इंदिरा जी की सरकार में डा़ के एल राव जो कि बांध बनाने वाले इंजीनियर थे,सिंचाई मंत्री बने तब उन्होंने आर्थर काटन के इस सपने से धूल झाड़ी और इंदिरा जी के सामने रखा।कांग्रेस ने 1970 में   इस योजना को नये दृष्टिकोण से जीवित किया।  डा. के एल राव की सोच थी कि जो हिमालयीन नदियां हैं उनमें ग्लेशियरों के पिघलने के कारण गर्मियों में अतिरिक्त जल होता है और बाढ़ आती है जबकि प्रायद्वीपीय नदियां गर्मियों में सूख जाती हैं और उनमें बरसाती मौसम में बाढ़ आती है अत: हिमालयीन नदियों और  प्रायद्वीपीय नदियों की आपस में जोड़ दिया जाता है तो सूखे के मौसम में जल की उपलब्धता बनी रह सकती है इसे इंटर-वेसिन रिवर लिंकिंग कहा गया।  इंदिरा गांधी ने 1980  में इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए एनडीआरडी की रिपोर्ट तैयार करवाई ।इसकी वित्तीय व्यवस्था बनाने के लिए शुरुआत की गई और उन्होंने 1982 में   नेशनल वाटर डेवलपमेंट अथॉरिटी का निर्माण किया यह नदी जोड़ो अभियान का पहला कदम था।इसके अंतर्गत इंटर-वेसिन नदियों को जोडऩे की योजनाओं पर कार्य शुरू हुआ ।कध्धययन हुए रिपोर्टें तैयार हुईं।

जब 1999 में एनडीए की सरकार आई और अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने इसे  उलटकर योजना के पूरे स्वरूप को ही बदल दिया और इंटर-बेसिन परियोजनाओं को इंट्रा-वेसिन परियोजनाओं में बदल दिया किंतु 2003 तक यह विचार स्वरूप लेता इसके पहले ही 2002 में सुप्रीम कोर्ट में इसके विरोध में पीआईएल लग गई ।आगामी चुनाव में बाजपेयी सरकार उलट गई और 2004 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार का गठन हुआ। तब इस परियोजना को फिर वास्तविक स्वरूप  यानि इंटर- बेसिन योजना के रूप में जीवित किया गया तथा सरकार ने इस पर व्यापक अध्ययन करवाया ।

साल 2012 में जब सुप्रीम कोर्ट में यह फैसला दिया कि नदियों के इंटरलिंकिंग का फैसला नीतिगत है और इसे सरकारें ही करें ।तब इस योजना के लिए 2012 से गति प्रदान की गई विभिन्न राज्यों के जल बंटवारे के आपसी समझौते और विवादों के निपटारे, पर्यावरणीय जोखिम एवं इकोसिस्टम को पहुंचने वाले नुकसानों के अध्ययन करते-करते और सुलझाते-सुलझाते 2021 में केन बेतवा योजना को कैबिनेट की स्वीकृति मिली जिसका भूमि पूजन वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया है। इंटर बेसिन नदी जोड़ो परियोजना मूलत आर्थर कॉटन का सपना था जिसे  डॉक्टर केएल राव ने आगे बढ़ाया और इंदिरा गांधी  की सरकार ने इसे संस्थागत स्वरूप प्रदान कर राष्ट्रीय जल विकास अथॉरिटी का निर्माण किया और इस अथॉरिटी ने ही इस कल्पना को जमीन पर उतारने की शुरुआत की ।संसाधन जुटाये, अध्ययन करवाया और यह योजना लगभग  54 साल बाद अब आकार ले रही है ।

आज देश में विकास को एक निरंतर अवधारणा के रूप में स्वीकार करने की आवश्यकता है। इसका श्रेय अकेली एनडीए सरकार को देना आर्थर कॉटन के सपने के साथ भी धोखा होगा और डा. के एल राव तथा इंदिरा गांधी की संकल्पना के साथ भी बेईमानी होगी । विकास की योजनाओं की निरंतरता के लिए जिन-जिन लोगों ने काम किया है सभी सरकारों को श्रेय दें इसमें इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेई, मनमोहन सिंह एवं नरेंद्र मोदी सभी शामिल हैं ।सपनों के जमीन पर उतरने की यही सच्चाई है।

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