उत्तराखंड का एक ऐसा गांव है जिसे पनीर गांव के नाम से जाना जाता है। वैसे इस गांव का नाम रौतू की बेली है जो टिहरी गढ़वाल जिले के जौनपुर विकास खंड में पड़ता है। पनीर गांव, पनीर विलेज, पहाड़ का पनीर गांव आदि नामों से प्रसिद्ध है।
यह गांव उत्तराखंड के प्रसिद्ध हिल स्टेशन मंसूरी से लगभग 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। मसूरी- उत्तरकाशी रोड पर स्थित सुवाखोली से केवल 5 किलोमीटर दूर है। यह गांव समुद्र तल से लगभग 6283 फीट की ऊंचाई पर है। गांव जनसंख्या लगभग 1500 है यहां करीब 250 परिवार रहते हैं। मजेदार बात यह है ये सभी परिवार पनीर बेचकर ही अपनी जीविका चलाते हैं जिसके चलते गांव का नाम पनीर गांव पड़ा।
प्रत्येक परिवार पनीर बेचकर आसानी से 15 से 35 हजार महीना कमा लेता है। यही वजह भी है कि इस गांव के लोग पलायन नहीं करना चाहते और यहीं रह कर पनीर बनाने का काम करते हैं। गांव प्राकृतिक संसाधनों से लैस है हरे-भरे जंगल में बांज, बुरांश ,देवदार और चीड़ मौजूद है, दुधारू पशुओं के लिए चारा आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
इस गांव के इतिहास को टटोल कर देखें तो रौतू की बेली में सर्वप्रथम , भूतपूर्व ब्लाक प्रमुख कुंवर सिंह पंवार ने इस गाव में पनीर बनाने व बेचने का काम 1980 मे किया था। उस वक्त भारत का सबसे सस्ता पनीर यहीं मिलता था वो भी मात्र 5 रुपये किलो। उस वक्त मसूरी बड़े बड़े स्कूलो में पनीर की आवश्यकता पड़ती थी तो नजदीकी गांव होने के कारण रौतू की बेली से पनीर मंगाया जाता था, पनीर शुद्ध और स्वादिष्ट सभी गुणवत्ता से भरपूर होने के कारण जल्दी प्रसिद्ध हो गया।
पहले केवल 30 -35 परिवार पनीर बनाते थे। धीरे धीरे डिमांड बढ़ने लगी, तो गांव के सभी परिवारों ने दूध बेचना छोड़ पनीर का व्यवसाय शुरू कर दिया। और रौतू कि बेली का पनीर पूरे भारत में छा गया। लोगों का कहना है कि उत्तराखंड सरकार को चाहिए,की ग्रामीणों,की समस्याओं को समझे, और इस गांव को पहाड़ का पनीर वाला गांव से पनीर हब ऑफ उत्तराखंड बना दें इसके लिए योजनाएं बनाई जानी चाहिए।